हमेशा सत्य बोले!!
"हर समय, हर जगह बोलना, और कुछ भी बोल देना अच्छा नहीं है। यदि बोलना आवश्यक ही हो, तो सत्य हितकारी एवं मधुर बोलना चाहिए। अथवा मौन रहना भी अच्छा है।"
हम देखते हैं, सुबह नींद खुलते ही लोग बोलना शुरू कर देते हैं। सुबह-सुबह ही इधर उधर की व्यर्थ बातें बोल बोल कर अपनी भी अशांति बढ़ाते हैं, और परिवार वालों की भी।
फिर जैसे तैसे सुबह की दिनचर्या पूरी करके घर से बाहर निकलते हैं। सुबह से रात्रि तक सारा दिन कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं। हर समय, हर जगह कुछ भी बोल देते हैं। बिना परीक्षा किए बोल देते हैं।
बहुत से लोगों का तो काम ही झगड़ा करना है। किसी से परिचय हो या न हो, उससे छेड़छाड़ करना, उसके जीवन आचरण में हस्तक्षेप करना, तरह तरह के प्रश्न उठाना, कि "आपने यह काम किया या नहीं किया? नहीं किया, तो क्यों नहीं किया? किया, तो क्यों किया?" इस तरह का हस्तक्षेप बहुत से मूर्ख लोग करते रहते हैं। "सावधान! आपके परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति से ऐसा पूछने का आपको अधिकार नहीं है।" "क्या आप दूसरों से पूछ कर सारे काम करते हैं? अथवा उनकी इच्छा से करते हैं? यदि आप उनसे पूछ कर नहीं करते, अथवा उनकी इच्छा से नहीं करते, अपनी मर्जी से सारे काम करते हैं, तो आप दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप क्यों करते हैं? आपको भी यह अधिकार नहीं है।" इसलिए बहुत सोच समझकर बोलना चाहिए। ईश्वर ने आपको वाणी सदुपयोग करने के लिए दी है, दुरुपयोग करने के लिए नहीं।
कहीं भी, कुछ भी बोलने से पहले यह सोचें, "कि क्या यहां बोलना आवश्यक है? यहां मेरा बोलने का अधिकार है भी, या नहीं? मैं जो कुछ बोल रहा हूं, क्या मैंने इसकी परीक्षा कर ली है? क्या मैं सत्य बोल रहा हूं। कहीं अपने स्वार्थ के लिए तो नहीं बोल रहा हूं, या वास्तव में दूसरे के हित के लिए बोल रहा हूं। कहीं मैं कठोर भाषा तो नहीं बोल रहा हूं? अथवा मैं अनधिकृत प्रश्न तो नहीं पूछ रहा हूं। मेरे प्रश्न से दूसरे व्यक्ति को कष्ट तो अनुभव नहीं होगा इत्यादि, बातों पर गंभीरता से विचार करके तब कुछ बोलना चाहिए।"
दूसरे के लिए हितकारी सत्य मधुर वचन बोलना चाहिए, अन्यथा मौन रहना ही बुद्धिमत्ता है। "सुबह उठने के बाद कम से कम 2 घंटे मौन रहना चाहिए। ऐसे ही शाम को भी 1 घंटा मौन रहना चाहिए। कुल मिलाकर कम से कम 3 घंटा प्रतिदिन मौन रखना बहुत अच्छा है।" "इससे वाणी पर संयम, मन इंद्रियों पर नियंत्रण, और मन की शांति मिलती है। इन 3 घंटों में ईश्वर आदि आध्यात्मिक विषयों पर चिंतन मनन विचार, ईश्वर का ध्यान, यज्ञ, स्वाध्याय आदि शुभ कर्म करना चाहिए। दो मास तक करके देखिए। आपको बहुत लाभ प्रतीत होगा।"
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